तू ने किया मुझे प्यार
कोई न था मददगार
तुझसे न देखा गया
मेरे गुनाहों का भार ।
तुझसे जुदाई रही,
कोई खुशी न मिली,
क्यों मैंने माना नहीं,
दिल पर तेरा इख्तियार ।
मैंने न सोचा कभी,
तेरी कभी न सुनी,
अपने गुनाहों से मैं,
करता रहा तुझे ख़ार ।
हालत नज़र आ गयी
नफरत मुझे हो गई।
सूरत से अपनी बुरी
खुद ही हुआ मैं बेज़ार।
कैसी मुहब्बत तेरी,
मुझपर जो ज़ाहिर हुई,
दे दी नई ज़िन्दगी,
बझुशे गुनाह बेशुमार ।
ये ही दुआ है मेरी,
होवे बसर ज़िन्दगी,
तेरे लिए ऐ मसीह,
हो जाऊं तुझ पर निसार ।