अगापे-अगापे अगापे
प्रेम से भर दो प्रभु (2)
मुझको भर दो प्रभु
अगापे प्रेम से (2)
चाहे कितनी ही भाषायें बोलूँ
स्वर्ग की हो या पृथ्वी की (2)
मुझमें प्रेम नहीं हैं तो
मैं झनझनाती झांझ हूँ (2)
सारी बातों में धिरज रखता,
और सबकुछ सहता है (2)
बैरी को माफ करता हे,
ये कलवरी का प्रेम है (2)
केसा हे ये प्रेम जिसकी,
कभी-भी हार ना हुयी (2)
ये है अगापे प्रभु का प्रेम,
हमेशा विजय पाता है (2)