आरास्ता हो, ऐ मेरी जान, कि बिछा है अब दस्तरख्यान,
जांच अपने को आरास्ता हो, खुदावन्द की जियाफत को
खुदावन्द मैं हूँ खताकार, और हूँ हर बात में गुनहगार
मैं बुरे पेड़ की डाली हूँ, और अछे फल से खाली हूँ
खुदावन्द मेरे तू हबीब, मैं तेरा बन्दा हूँ गरीब
मैं भूखा-प्यासा आता हूँ, आसूदा हुआ चाहता हूँ
तू अपने कामिल फजल से, आरास्तर्गी को मूझे दे
बे-रिया गम गुनाहों का, और हक ईमान दे मुंजी का
मसीह ! निआमत तेरी हैं, उसी से दिल की सेरी है
आरास्ता हो, ऐ मेरी जान, देख बिछा है एक दस्तरख्यान