आजा की बुलाती है
सूली पे फैली वो बाहें
तेरी राह देखती है
इस पार तेरी वो रहें
इस पार है समुंदर, उस पार तेरा घेर है
माझी है तेरा येशु, किस बात का डर है
तू है ज़मी पे तुझ पर, है उसकी निगाहें
गम की घटा के पीछे, एक चाँद है ख़ुशी का
इन आंसुओं में लिपटा, पैगाम है ख़ुशी का
सिजदे पे आके उसके, आओ हम सर झुका दें
आजा करीब उसके, तुझको वो थाम लेगा
तुझे गोद में उठा कर, तुझको आराम देगा
वहाँ फिर कभी न होंगे, दुनिया के दर्द-ओ-आहें